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किले में सोना और स्विस बैंक में काला धन!- विनीत नारायण

इन दिनों भूगर्भ विभाग और भारतीय पुरात्तव विभाग उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में खुदाई में जुटे हैं। इसमें कोई नई बात नहीं। नई बात यह है कि इस खुदाई को लेकर पूरी दुनिया के मीडिया की निगाह उन्नाव पर लगी है। पीएसी खुदाई स्थल को घेरे खड़ी है। जनता कौतुहल भरी निगाहों से वहां पहुंच रही है। पीपली लाइव की तरह वहां बाजार लग गया है। यह सारा तूफान सोने के लिए है। स्थानीय साधु शोभन सरकार ने सपने के आधार पर यह बताया कि डेढ़ सौ साल पहले राजा राव राम बख्श सिंह के सोने का भंडार यहां किले में दबा पड़ा है। पहला आकलन एक हजार टन सोने का था। फिर घटते-घटते अब 21 टन की बात की जा रही है। हालांकि पुरातत्व और भूगर्भ विभाग के अधिकारियों ने ऐसा दावा अभी तक नहीं किया है। ठीक वैसे ही, जैसे कुछ दिन पहले यह शोर मचा था कि भारत का 400 लाख करोड़ रुपया स्विस बैंकों में जमा है। उस दावे का कोई ठोस आधार या प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया गया। फिर भी सरकार ने हाथ-पैर मार कर 11 हजार करोड़ काला धन बाहर जमा होने की पुष्टि की। जब तक कोई प्रमाण सामने न आए, तब तक उसे कोरी कल्पना ही माना जाएगा।

लेकिन यहां उन्नाव में खुदाई का आधार सोना न भी हो, तो भी पुरातात्विक अवशेषों के वहां मौजूद होने के वैज्ञानिक प्रमाण मिले हैं। वैसे सोना मिल भी जाए, भले ही कुछ मात्रा में ही, तो भी कोई अजूबा नहीं होगा, क्योंकि राजा राव राम बख्श सिंह की 150 वर्ष पहले वार्षिक आमदनी एक लाख रुपया थी और खर्चा 1,000 रुपया महीना भी नहीं था। वैसे भी इस राजा पर देश के कई बड़े राजघरानों के धन को छिपाकर रखने की जिम्मेदारी थी। विदेशी हमले की दशा में राज खजाने का सारा धन एक बार में ही न लुट जाए, इसलिए बड़े राज परिवार अपना धन उन्नाव के इस राजा के पास गुप्त रूप से जमा करवा देते थे। गंगा के किनारे किला होने के कारण देश में नावों के रास्ते सोने का खुफिया तरीके से आदान-प्रदान आम बात थी। इस तरह खजाने को रखने की एवज में उन्नाव का यह राजा दूसरे राज घरानों से मोटी फीस वसूलता था, जिससे वह अपनी तगड़ी फौज रखता था।

दरअसल भारत जैसे पुराने देश में जहां सदियों से हजारों राजतंत्र रहे हों, ऐसे खजाने गड़े होना कोई अनहोनी बात नहीं है। बुंदेलखंड में तो इन खजानों को खोजने वाले बाकायदा पेशेवर लोग होते हैं, जिन्हें 'दफीनी' कहा जाता है। वे अपने तंत्र-मंत्र और अनुभव के आधार पर ठेके पर ऐसी खुदाई करते हैं। बाकी देश में भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो गड़े खजाने की खोज में आधुनिक उपकरणों को लिए डोला करते हैं। कुछ वर्ष पहले इस्कॉन के कुछ युवा भक्त जयपुर की एक किले की दीवारों से ऐसे ही गड़ा सोना निकालते पकड़े गए थे।

पुरातत्व और भूगर्भ वाले इतने मूर्ख नहीं हैं कि वे बिना किसी आधार के खुदाई शुरू कर दें। यह बात दूसरी है कि वहां सोने के अतिरिक्त अन्य ऐतिहासिक वस्तुएं बरामद हो जाएं। सवाल यह है कि टीवी चैनल जिस तरह से ओमजी महराज को घेरने में जुटे हैं, क्या वैसे ही उन्होंने अन्ना हजारे और सुब्रमण्यम स्वामी को घेरा था, जब उन्होंने खुलेआम स्विस बैंक में 400 लाख करोड़ रुपया काला धन जमा होने का दावा किया था। जो भी हो, इस देश में गड़े या छिपे धन की कमी नहीं। अगर सरकारों की सद्इच्छा हो और इस धन का उपयोग समाज के भले के लिए हो, तो इस धन को निकालने का व्यवस्थित प्रयास होना चाहिए।

केरल के पद्मनाभ स्वामी मंदिर में दो लाख करोड़ रुपये मूल्य के जेवर और सोना रखा है, पर इस पैसे का धर्मक्षेत्रों को विकसित करने या किसी सामाजिक कार्य में प्रयोग नहीं हो रहा है। यही हाल तिरूपति बालाजी का भी है। देश के कई अन्य मंदिरों में भी कमोबेश ऐसा ही हाल है। स्थिति यह है कि इस तरह की संपत्ति और धन कई ट्रस्टों और धार्मिक संस्थानों में विवाद की भी जड़ बना हुआ है। दरअसल, ऐसी संपत्ति का इस्तेमाल जनहित में किया जा सकता है, जिसकी ओर ध्यान नहीं दिया जाता। सरकार धार्मिक संस्थानों और ट्रस्टों को विश्वास में लेकर ऐसी पहल कर सकती है।